मैं हर रोज़ एक सपना सजाता हूँ


lokesh vashist rachna,


मैं  हर  रोज़  एक  सपना  सजाता  हूँ

मैं  हर  रोज़  एक  सपना  सजाता  हूँ
गैर  होकर  भी  तुझे अपना बनाता हूं

तुझे कभी तो  मेरे प्यार की कद्र होगी,
रोज़ ये बात अपने दिल को समझाता हूँ

नजदीक से गुजरे पर देखा तक नही,
तेरी हर बेरुखी को संयोग बताता हूँ

वो शक्ल से भी मेरी नफरत करते है,
जिनकी फ़ोटो में तकिए से दबाता हूँ।।

॥ All rights reserved॥ 



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