एक झलक देख तो लेते

lokesh vashist poetry

एक झलक देख तो लेते 

कुछ न कहते एक झलक देख तो लेते
इतनी सी हसरत थी  इस दीवाने की।

जब  तन्हा  छोड़कर  ही  जाना था
क्या  जरूरत थी  दिल  लगाने की।

तेरी मोहबब्ब्त तो कभी बन न सकें
हंसी  जरूर  बन गए  जमाने  की।

आशियाना सजाने के  ख्वाब देखे थे
तुमने लत  लगा  दी  मयखाने की।

"वशिष्ठ" अब यही अपनी जन्नत है
क्या  जरूरत  है  ऊपर  जाने  की।

★★★

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