नमस्कार
मित्रो! गज़ल क्या होता है, गज़ल कैसे लिखते है? सरलता से साहित्य
नियम समझाने की श्रृंखला में आज हम गजल के बारे में जानेंगे। इस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद आप स्वयं गज़ल लिखने लगेंगे, ऐसा हमारा दृन विश्वास है। तो चलिए शुरू
करते है...
गजल क्या है?
गजल अरब देश से प्रारम्भ हुई एक छन्द काव्य है, जिसके सभी शेर समान बहर और वजन के अनुसार लिखे जाते है।
जिस प्रकार भारत में गीत, कविता, दोहे आदि प्रचलन में रहे है, वैसे ही अरब में गज़लों का प्रयोग किया जाता रहा है। भारत में गज़ल को सर्वप्रथम लाने का श्रेय अमीर खुसरो” को दिया जाता है।पहले भारतीय गज़लकार गज़लों में अरबी, फारसी और उर्दू का प्रयोग किया करते थे, लेकिन अब हिन्दी, उर्दू दोनों शब्दों
का समान्य रूप से प्रयोग किया जाने लगा है।
दुष्यंत
कुमार जो एक ख्याति प्राप्त कवि रहे है,
उन्होने गज़लों में हिन्दी शब्दों का प्रयोग कर हिन्दी भाषी के साथ जोड़ने का प्रथम
प्रयास किया था। जिसके फलस्वरूप ग़ज़ल आम
हिन्दी के जानकर के मध्य भी प्रचलित
हो पाया। जब भी गज़ल के इतिहास पर चर्चा होगी,
दुष्यंत कुमार के योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा।
गज़ल से संबन्धित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-
- ग़ज़ल में 3 से लेकर 25 शेर तक हो सकते है (किसी के मत से 5 से 25)।
- ग़ज़ल में शेरों का विषम संख्या में होना ज्यादा बेहतर माना जाता है जैसे 5,7,9...।
- अधिकांश ग़ज़लकार अपने ग़ज़लों में पाँच शेर का प्रयोग करते है।
- पाँच से अधिक शेरों की गजल लिखने की अपनी जटिलता है, क्योंकि काफिया (तुकांत शब्द) का मिलान करना मुश्किल हो जाता है।
- गजल
में काफिया, रदीफ़, मतला और मकता होता है।
- गजल के अंतिम शेर में शायर अपना तखल्लुस (उपनाम) लिखता है।
अगर आप उर्दू साहित्य में नवीन छात्र है तो काफिया, रदीफ़, मतला आदि शब्द आपके लिए सर्वथा
अपरिचित होंगे। हम आपको आगे इन सब शब्दों का मतलब बतायंगे लेकिन, उससे पहले एक गजल देख लेते है-
उदाहरण:-1
मैं तो चाहूँ सारी दुनिया, मेरे जैसा प्यार करें
धरती को महबूबा माने, और इसका सिंगार करें
तुझको देख के जाने ये किस पागलपन ने घेर लिया
तेरे दर्शन का अभिलाषी नाचे और चीत्कार करें
ये तो नीरा दीवानापन है, जीवन के सौदागर का
ठोस हकीकत की बस्ती में, सपनों का व्यापार करें
उसको है अधिकार सिखाए, सब्रों-सूकुं का पाठ हमें
ज्यादा खुशी से जो घबराए, गम को सहज स्वीकार करें
जीवन के सागर में ‘अंजुम’ हम ये मानके उतरे थे
भय की कल्पना नाव डुबोए, हिम्मत बेड़ा पार करें।
संकेत:-
1. काफिया- प्यार, सिंगार, चीत्कार, व्यापार, स्वीकार, पार।
2. रदीफ़- करें।
3. मतला- मैं तो चाहूँ ...सिंगार करें। (पहला शेर)
4. मक्ता- जीवन के सागर.....पार करें।(अंतिम शेर)
5. तखल्लुस- अंजुम
6. रचना प्रकार– गज़ल
ऊपर दिये गए गजल को देखने मात्र से आप गज़ल के बारे में काफी कुछ
जान गए होंगे। अब हम आपको गजल की बारीकी
को
समझाते है। लेकिन उससे पहले एक महत्वपूर्ण बात- “आपको इन शब्दों में उलझना नहीं है, इन्हे सिर्फ कहानी की
तरह पढ़िये और उदाहरण देखते रहिए।” आप जैसे जैसे पोस्ट में आगे बढ़ते जाएंगे, स्वयं समझते चले जाएंगे-
शेर:- अपनी बात को मात्र 2 लाइन में पूरी कह देना “शेर” कहलाता है। अर्थात एक
शेर में 2 पंक्ति/ लाइन होती है, जिसे उर्दू
में “मिसरा” कहते है। हमने इस विषय को शायरी लिखना सीखे पोस्ट में विस्तार से समझाया है। आप चाहे तो इसे नीचे दिये गए लिंक में क्लिक करके पढ़ सकते है।
मतला:- गज़ल के प्रथम शेर को “मतला” कहते है। जिसके दोनों मिसरो (पंक्ति) में काफिया (तुकांत शब्द) होता है।
मैं तो चाहूँ सारी दुनिया, मेरे जैसा प्यार करें
धरती को महबूबा माने, और इसका सिंगार करें।
यदि पहले शेर की दोनों पंक्तियो में काफिया न हो तो उसे मतला
नहीं कहा जाएगा। अर्थात मतला होने की शर्त पहले शेर की दोनों मिसरो (पंक्ति) में काफिये का
इस्तेमाल होना है।
विशेष- गज़ल में एक से अधिक मतले भी हो सकते
है। जिस गज़ल में एक से अधिक मतले का प्रयोग किया गया हो 'हुस्ने-मतला' कहते है। उदाहरण के लिए अंजुम रहबर की गज़ल के प्रथम 2 शेर
देखिये-
उदाहरण:-2
आग बहते हुए पानी में लगाने आई
तेरे ख़त आज मैं दरिया में बहाने आई
फिर तिरी याद नए ख़्वाब दिखाने आई
चाँदनी झील के पानी में नहाने आई
काफिया:- यह गज़ल की जान होती है। समान तुक वाले शब्द
को काफिया कहते है। उदाहरण:-1 मे प्यार, सिंगार, चीत्कार, व्यापार, स्वीकार, पार काफिया है, क्योंकि इनके उच्चारण का अंत समान है। सुविधा की दृष्टि के लिए काफिये को
लाल रंग में दर्शाया गया है।
अगर आपने उदाहरण-1 को ध्यान से देखा होगा तो एक बात जरूर नोटिस की होगी। पहले शेर
की दोनों लाइन में और बाद के शेर की हर दूसरी पंक्ति में काफिये का इस्तेमाल किया
गया है। एक अन्य महत्वपूर्ण बात जब तक बहुत जरूरी न हो गज़ल में एक ही काफिय का दुबारा प्रयोग न करें। जैसा कि उदाहरण में हर बार अलग काफिये
का प्रयोग किया गया है। यही गजल में काफिया
का नियम है।
रदीफ़:-
गज़ल में “रदीफ़” स्थिर रहता
है ओर काफिये के बाद लिखा जाता है। उदाहरण:-1 में “करें” रदीफ़ है जो पूरे ग़ज़ल में स्थिर है।
गज़ल
में रदीफ़ होना अनिवार्य नहीं है। बिना रदीफ़ के भी गजले लिखी जा सकती है, ऐसे शेर काफिये से समाप्त होते है। उदाहरण के लिए रंजीत
भट्टाचार्य की गजल के प्रथम 2 शेर देखिए। जिसमे रदीफ़ का इस्तेमाल नहीं किया गया है, काफिये को लाल
रंग में दर्शाया
गया है-
एक दिन मैं धूप से कुछ रोशनी चुराऊँगा
फिर स्याह रात के, चहरे पर मलने जाऊंगा
अभी आँधी की नजर है मेरे नशेमन पर
मैं तितलियों का गाँव, फिर कभी बसाऊंगा।
मक्ता:- गज़ल के अंतिम शेर को “मक्ता कहते है,
जिसमे शायर अपना तखल्लुस (उपनाम) लिखता है। “यदि ग़ज़ल के अंतिम शेर में तखल्लुस का प्रयोग नहीं किया गया है, तो उसे मक्ता न कहकर ग़ज़ल का अंतिम शेर
कहा जाएगा।” उदाहरण में ‘अंजुम’ तखल्लुस है-
जीवन
के सागर में ‘अंजुम’ हम ये मानके उतरे थे
भय की कल्पना नाव
डुबोए, हिम्मत बेड़ा पार करें।
ग़ज़ल प्रारम्भिक ज्ञान परीक्षण
यह परीक्षा आपकी नहीं मेरी है।
क्या मै अपने उदेश्य (गजल के नियमों को सरलता से समझाना) में सफल हो पाया। इसका निर्णय अभी हो जाएगा।
प्रश्न संख्या 1- अंक 10
नीचे एक गजल प्रस्तुत है, जिसे ध्यान से पढ़िये और काफिया,
रदीफ़, मतला और मक्ता आदि की पहचान कर पोस्ट के अंत में दिये गए
उत्तर से मिलान करिए...
सपनों का आसियाना, फिर से उजड़ गया
ठंडी हवा का झोका, थप्पड़ सा जड़ गया
ऊंचे दरख्त
पे था परिंदे का
घोसला
जल गया वो
जंगल, जोड़ा बिछड़ गया
काफिला चला, उन मंजिलों
के रास्ते
कुछ दूर जा
न पाया, वापिस मूड गया
गत रात वो
भूख से, फुटपात पर मरा
उठवाने शव सुबह से, गणतन्त्र जुड़ गया
बरगद के गिर्द फिर से, बांध गए डोरी
अजादियों की खातिर, जड़ से उखड़
गया
जन गण का गान जिसको, मुद्दत से रटाया
कल शाम वो तोता, पिंजड़े से उड़ गया।
प्रश्न संख्या 2:- अंक 20
- रदीफ़ से आप क्या समझते है?
- मतला होने की शर्त क्या है, उदाहरण द्वारा समझाइए।
- आसमान के 10 काफिये शब्द लिखिए।
- ग़ज़ल होने की मुख्य शर्त क्या है?
प्रश्न सख्या 3:- अंक 30
नीचे एक
शेर दिया गया है, क्या यह किसी ग़ज़ल का मतला हो सकता है? यदि हाँ, तो इसका ग़ज़ल बनाए। आप अपना उत्तर हमे कॉमेंट बॉक्स के
मध्यम से भेज सकते है..
मोहब्बत मसला है दिल का इबादत
है
उनकी चाहत खुद खुशी है आफत
है।
परीक्षा परिणाम:-
40 से ऊपर- अति उत्तम, 30 से 40- उत्तम, 20 से 30- सामान्य, 0 से 20- पुनः प्रयास करें।
आजका यह पोस्ट गजल
सीखने की दिशा में पहला कदम था, शीघ्र ही गजल लिखना सीखें
भाग-2 आप सब के सामने लेकर हाजिर होऊंगा।
साहित्य नियम सीखने की श्रंखला में आपको आज का यह लेख “गजल लिखना सीखे भाग-1” पसंद आया हो, तो इसे नीचे दिये गए शेयर बटन पर
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उत्तर:- काफिया- जड़,
बिछड़, मूड, जुड़,
उखड़, उड़। रदीफ़- “गया”। मतला- सपनों का...जड़ गया (पहला शेर)। मक्ता- ग़ज़ल के अंतिम शेर में तखल्लुस का प्रयोग नहीं किया गया है। अतः इसे मक्ता न कहकर ग़ज़ल का अंतिम शेर कहा जाएगा। तखल्लुस- प्रयोग नहीं।
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ग़ज़ल लिखना सीखे भाग 2 का इंतज़ार रहेगा .😊
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteBahut khub sir ��
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