भगवान् तो अंधे नहीं है



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एक दिन में अपने घर से बाहर निकला। शाम का समय था, मैंने अपने मित्र को बुलाया। तब हम दोनों नगर से बाहर मंदिर में दर्शन के लिए चल दिये। हम घर से थाडे दूर निकले ही होंगे, कि हमे एक अंधा आदमी मिल गया। वह भी मंदिर में दर्शन के लिए जा रहा था। उस अंधे को देखकर मेरे मित्र को हंसी आ गयी। उसकी हंसी का कारण मुझे समझ में नहीं आया।

मैंने उससे कहा- तुम क्यों हंस रहे हो? मेरे मित्र ने कहा-यह अंधा व्यक्ति मंदिर क्यों जा रहा है? इसे तो कुछ भी दिखाई नहीं देगा। यह उस अंधे व्यक्ति ने भी सुन लिया और कहने लगा आप सही कह रहे है। मै मंदिर में कुछ भी नहीं देख सकता। किन्तु भगवान तो अंधे नहीं है वह तो मुझे अवश्य देखेंगे। “मै उनसे प्रार्थना करूंगा कि वे किसी को अन्धा न बनाये।”

उसकी यह बात सुनकर मेरे आँख नम हो गयी और मेरे मित्र का सर शर्म से झुक गया।



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